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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : औरत की ज़िन्दगी <br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : भूख <br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[रघुवीर सहाय ]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[मासूम गाज़ियाबादी ]]</td>
 
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भूख इन्सान के रिश्तों को मिटा देती है।
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करके नंगा ये सरे आम नचा देती है।।
  
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आप इन्सानी जफ़ाओं का गिला करते हैं।
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रुह भी ज़िस्म को इक रोज़ दग़ा देती है।।
  
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कितनी मज़बूर है वो माँ जो मशक़्क़त करके।
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दूध क्या ख़ून भी छाती का सुखा देती है।।
  
कई कोठरियाँ थीं कतार में
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आप ज़रदार सही साहिब-ए-किरदार सही।
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई
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पेट की आग नक़ाबों को हटा देती है।।
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
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उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
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भूख दौलत की हो शौहरत की या अय्यारी की।
उसके बचपन से जवानी तक की कथा
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हद से बढ़ती है तो नज़रों से गिरा देती है।।
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अपने बच्चों को खिलौनों से खिलाने वालो!
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मुफ़लिसी हाथ में औज़ार थमा देती है।।
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भूख बच्चों के तबस्सुम पे असर करती है।
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और लडअकपन के निशानों को मिटा देती है।।
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देख ’मासूम’ मशक़्क़त तो हिना के बदले।
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हाथ छालों से क्या ज़ख़्मों से सजा देती है।।
 
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01:43, 14 मार्च 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : भूख
  रचनाकार: मासूम गाज़ियाबादी
भूख इन्सान के रिश्तों को मिटा देती है।
करके नंगा ये सरे आम नचा देती है।।

आप इन्सानी जफ़ाओं का गिला करते हैं।
रुह भी ज़िस्म को इक रोज़ दग़ा देती है।।

कितनी मज़बूर है वो माँ जो मशक़्क़त करके।
दूध क्या ख़ून भी छाती का सुखा देती है।।

आप ज़रदार सही साहिब-ए-किरदार सही।
पेट की आग नक़ाबों को हटा देती है।।

भूख दौलत की हो शौहरत की या अय्यारी की।
हद से बढ़ती है तो नज़रों से गिरा देती है।।

अपने बच्चों को खिलौनों से खिलाने वालो!
मुफ़लिसी हाथ में औज़ार थमा देती है।।

भूख बच्चों के तबस्सुम पे असर करती है।
और लडअकपन के निशानों को मिटा देती है।।

देख ’मासूम’ मशक़्क़त तो हिना के बदले।
हाथ छालों से क्या ज़ख़्मों से सजा देती है।।