"बड़ी उम्मीद / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर
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जो मेरे नियंत्रण में नहीं हैं | जो मेरे नियंत्रण में नहीं हैं | ||
हो जाती हैं नियंत्रित ढंग से | हो जाती हैं नियंत्रित ढंग से | ||
− | जैसे सूरज बिना | + | जैसे सूरज बिना आवाज़ अँधेरे को चीर कर |
निकल आता है समय पर | निकल आता है समय पर | ||
− | तय समय पर | + | तय समय पर बरसती है ओस |
− | नहाकर खाना बनाने की तैयारी करती हैं | + | नहाकर खाना बनाने की तैयारी करती हैं पत्तियाँ |
− | जाग जाते हैं | + | जाग जाते हैं पक्षी |
− | गिलहरिया काम | + | गिलहरिया काम से लग जाती हैं |
− | चहचहाना और | + | चहचहाना और चिंहुकना |
सबको बता देता है | सबको बता देता है | ||
दुनिया अभी रहने लायक है | दुनिया अभी रहने लायक है | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 21: | ||
दूध वाला समय पर आ जाता है | दूध वाला समय पर आ जाता है | ||
चाय मिल जाती है अपने वक़्त | चाय मिल जाती है अपने वक़्त | ||
− | बदस्तूर आ जाता है | + | बदस्तूर आ जाता है अख़बार |
− | + | ट्रेफ़िक और दफ़्तर की मशक्कतों के बीच | |
कुछ ऐसा हो ही जाता है | कुछ ऐसा हो ही जाता है | ||
− | + | नई करवट लेती है उम्मीद | |
घर वापस लौटना | घर वापस लौटना | ||
प्रिय स्त्री के पास | प्रिय स्त्री के पास | ||
− | जो मेरा | + | जो मेरा इंतज़ार करती है |
हमेशा से बड़ा सुकून है | हमेशा से बड़ा सुकून है | ||
छलछलाता है बिटिया का संतोष | छलछलाता है बिटिया का संतोष | ||
पडोसी की एक साल की नातिन लगाती है | पडोसी की एक साल की नातिन लगाती है | ||
− | ता-ता . डा डा की | + | ता-ता . डा डा की ज़ोर की पुकार |
तन्द्रा से जग उठता है घर | तन्द्रा से जग उठता है घर | ||
− | अंधेरी घाटी में | + | अंधेरी घाटी में उतरते वक़्त अकेले |
− | रहता है | + | रहता है विश्वास |
फिर से सूरज उगेगा | फिर से सूरज उगेगा | ||
− | फिर होगा एक | + | फिर होगा एक खुशनुमा दिन |
− | और वह बड़ी | + | और वह बड़ी ख़बर-ख़ुशी |
− | लौटेगी बार बार | + | लौटेगी बार-बार |
− | छोटी छोटी बातो में | + | छोटी-छोटी बातो में |
− | + | ||
− | + | ||
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00:47, 7 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
कितनी हे बातें
जो मेरे नियंत्रण में नहीं हैं
हो जाती हैं नियंत्रित ढंग से
जैसे सूरज बिना आवाज़ अँधेरे को चीर कर
निकल आता है समय पर
तय समय पर बरसती है ओस
नहाकर खाना बनाने की तैयारी करती हैं पत्तियाँ
जाग जाते हैं पक्षी
गिलहरिया काम से लग जाती हैं
चहचहाना और चिंहुकना
सबको बता देता है
दुनिया अभी रहने लायक है
दूध वाला समय पर आ जाता है
चाय मिल जाती है अपने वक़्त
बदस्तूर आ जाता है अख़बार
ट्रेफ़िक और दफ़्तर की मशक्कतों के बीच
कुछ ऐसा हो ही जाता है
नई करवट लेती है उम्मीद
घर वापस लौटना
प्रिय स्त्री के पास
जो मेरा इंतज़ार करती है
हमेशा से बड़ा सुकून है
छलछलाता है बिटिया का संतोष
पडोसी की एक साल की नातिन लगाती है
ता-ता . डा डा की ज़ोर की पुकार
तन्द्रा से जग उठता है घर
अंधेरी घाटी में उतरते वक़्त अकेले
रहता है विश्वास
फिर से सूरज उगेगा
फिर होगा एक खुशनुमा दिन
और वह बड़ी ख़बर-ख़ुशी
लौटेगी बार-बार
छोटी-छोटी बातो में