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"पेंसिल / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’" के अवतरणों में अंतर

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यह चलती ही जाती है ।।
 
यह चलती ही जाती है ।।
  
तख़्ती, क़लम, स्लेट का  
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तख़्ती, क़लम, स्लेट का तो
तो इसने कर दिया सफ़ाया है ।
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इसने कर दिया सफ़ाया है ।
 
बदल गया है समय पुराना,
 
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नया ज़माना आया है ।।
 
नया ज़माना आया है ।।
 
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15:10, 24 मई 2010 के समय का अवतरण

रंग-बिरंगी पेंसिलें तो,
हमको ख़ूब लुभाती हैं ।
ये ही हमसे ए-बी-सी-डी,
क-ख-ग लिखवाती हैं ।।

रेखा-चित्र बनाना,
इनके बिना असम्भव होता है ।
कला बनाना भी तो,
केवल इनसे सम्भव होता है ।।
 
गलती हो जाए तो,
लेकर रबड़ तुरन्त मिटा डालो।
गुणा-भाग करना चाहो तो,
बस्ते में से इसे निकालो।।

छोटी हो या बड़ी क्लास,
ये काम सभी में आती है ।
इसे छीलते रहो कटर से,
यह चलती ही जाती है ।।

तख़्ती, क़लम, स्लेट का तो
इसने कर दिया सफ़ाया है ।
बदल गया है समय पुराना,
नया ज़माना आया है ।।