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"बाज़ार से गुज़रते हुए / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
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12:49, 6 जून 2010 के समय का अवतरण
बाज़ार से गुजरते हुए
घिर रही है सारी धरती
सामान के अंबार से
दुकानों में बदल रहे हैं घर
बाजार बन रही है दुनिया
अब कहां रहेंगे वो लोग
जो भरे हैं
इंसानियत और प्यार से
1997