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"ज़रा सा क़तरा कहीं / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर

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ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है<br>
 
ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है<br>

16:06, 18 मई 2008 का अवतरण

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है

ख़ुली छतों के दिये कब के बुझ गये होते
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है

शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है

ज़मीं की कैसी विक़ालत हो फिर नहीं चलती
जब आस्मान से कोई फ़ैसला उतरता है

तुम आ गये हो तो फिर कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है