भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
					
										
					
					कंकड़ीले काल-पथ पर खड़ा 
कायान्तरण के दमनकारी झंझावात में
ऐतिहासिक होने पर अदाअड़ा 
मौलिकता का मोहताज़
मैं--एक मारियाल नपुंसक घोडा घोड़ा हूं
साल में एकाध बार 
बेशकीमती साज-सामान
कौड़ी के भाव इन्सान
और बहुरुपी बहुरूपिये विदेशीपन के नाम पर ईमान,यहां धेरों ढेरों लगती है दुकानेंजबके तेधी जबकि टेढ़ी खीर है
क्रेता-विक्रेता की करनी पहचान  
क्योंकि यहां ग्राहक भी 
ठुमकते क्रीड़ारत बच्चों 
ऐंठते-अकड़ते जवानों
बैसाखियाँ थामे बूढों बूढ़ों जैसे 
गुजरते,गुजरते गुजरते हुए
और देखा है काल-वलय को
	
	