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"अँधेरे में / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर

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किताबों के पन्ने भी
 
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छापती रही कोरे काग़ज़ पर
 
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दीवार पर /धूप और बारिश पर
 
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ताकि आने वाली पीढ़ियों को
 
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अँधेरे में इक चिराग़ मिले
 
अँधेरे में इक चिराग़ मिले
  
 
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07:53, 21 जुलाई 2010 का अवतरण


तुमने बिछाया
वह बिछी
तुमने ताना
वह तन गई
सिर नवा कर लिया
जो दिया तुमने
तुमने माँगा
तो लौटाया
बिन हील हुज्जत
लौ नहीं हुई
पर जलती रही
तपी नहीं पर पिघलती रही
तुम्हारे हुक़्मनामों के बावजूद लेकिन
पढ़ती रही अपने हक़ में लिखी गई
किताबों के पन्ने भी
रखती रही उनमें
तितलियों के पर भी
उकेरती रही नखों से
हाशियों में अपने लिए
सूरज / नदी / बेल-बूटे
पंक्ति-बद्ध अक्षरों को
कभी नारों -सा उछालते
कभी झण्डे-सा उठाते
और कभी भाँजते तलवार की तरह
लहुलुहान हथेलियों को
छापती रही कोरे काग़ज़ पर
दीवार पर /धूप और बारिश पर
ज्यूँ का
 त्यूँ
ताकि आने वाली पीढ़ियों को
अँधेरे में इक चिराग़ मिले