भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पहचान / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Piyush Garg (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: Dhuen ke saath oopar uthunga mein, Bachho jise tum kahte ho carbon die oxide, wahi ban kar chaa jaunga mein ped kahi honge to aur hare ho jayenge, fal kahi honge to aur pa…) |
Piyush Garg (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | धुंए के साथ ऊपर उठूँगा मैं, | |
− | + | बच्चो जिसे तुम पढ़ते हो कार्बन दाई आक्साइड, | |
− | + | वही बन कर छा जाऊंगा मैं, | |
− | + | पेड़ कहीं होंगे तो और हरे हो जायेंगे, | |
− | + | फल कहीं होंगे तो और पाक जायेंगे. | |
− | + | जब उन फलों की मिठास तुम तक पहुंचेगी, | |
− | + | या हरियाली भली लगेगी, | |
− | + | तब तुम मुझे पहचान लोगे, | |
− | + | और कहोगे, "अरे पापा" | |
− | + |
18:08, 8 सितम्बर 2010 का अवतरण
धुंए के साथ ऊपर उठूँगा मैं, बच्चो जिसे तुम पढ़ते हो कार्बन दाई आक्साइड, वही बन कर छा जाऊंगा मैं, पेड़ कहीं होंगे तो और हरे हो जायेंगे, फल कहीं होंगे तो और पाक जायेंगे. जब उन फलों की मिठास तुम तक पहुंचेगी, या हरियाली भली लगेगी, तब तुम मुझे पहचान लोगे, और कहोगे, "अरे पापा"