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+ | आतंक को तुम रोक दो , यूं रक्त न बहाओ तुम, | ||
+ | खुशहाल हों सबही यहां , मैं मन्नतें मना रही, | ||
+ | मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही। |
16:48, 23 मई 2007 का अवतरण
रमा द्विवेदी की रचनाएँ
{{KKParichay |चित्र=Ramadwivedi.jpg |नाम=रमा द्विवेदी |उपनाम= |जन्म=01 जुलाई 1953 |जन्मस्थान=ग्राम पाटनपुर, जिला हमीरपुर, उत्तर प्रदेश, भारत |कृतियाँ=दे दो आकाश (काव्य संग्रह, 2005) |विविध=-- |जीवनी=रमा द्विवेदी / परिचय
रचनाकार:डा. रमा द्विवेदी
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*मुझको हरित बनाओ अब /रमा द्विवेदी
यह धरती अकुला रही,हमें तुम्हें बुला रही,
मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही।
लगाओ पेड़-पौधे तुम , प्रदूषण को भगाओ तुम पाओगे ताजी हवा , रोगों से मुक्ति पाओ तुम, चेहरा रहे खिला-खिला यही हमें बता रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही ।
जिसनें दिया तुम्हेंजन्म हैउसको न यूं सताओ तुम जन्मने का हक़ उसे भी दो यूं भ्रूण न मिटाओ तुम, सिष्टि चलेगी उससे ही ,बस बात यह बता रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही।
मुझ पर बनाते घर-मकां , मुझ पर बनाते हो महल, मुझ पर उगाते अन्न-फल, मुझे रौंदते हो हर पहर, मुझमें मिलोगे अन्त में , बस बात यह समझा रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही।
सदियों से रुदन कर रही , न सिसकियां तुमने सुनी, जर्जर हुई हर सांस है , टूटेगी जाने किस घड़ी, चेतावनी यह समझो प्रलय की घड़ी आ रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही ।
इतना सताओ न मुझे दुनिया में क़हर ढ़ाऊं मैं, अपनी नहीं चिन्ता मुझे कैसे तुम्हें बचाऊं मैं , इंसान ही के वास्ते , मैं खुद को थी मिटा रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही ।
मुझ पर बढ़ा जो भार है ,उसको जरा घटाओ तुम, आतंक को तुम रोक दो , यूं रक्त न बहाओ तुम, खुशहाल हों सबही यहां , मैं मन्नतें मना रही, मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही।