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"सब कुछ है / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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सब कुछ है
मगर जिंदगी जीने का
इतमीनान नहीं है।

शेर की कौन कहे-
आदमियों में
चिड़ियों की जान नहीं है
कि जियें
अस्तित्व को सार्थक किए।

रचनाकाल: १७-०७-१९७९