भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अलसुबह ही मेरा घर / सत्यनारायण सोनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>रात फिर आंधी आई घर भर गया सारा कोना-कोना अट गया धूल से। बच्चों की…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>रात फिर आंधी आई
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=सत्यनारायण सोनी
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<Poem>  
 +
रात फिर आंधी आई
 
घर भर गया सारा
 
घर भर गया सारा
कोना-कोना अट गया धूल से।
+
कोना-कोना अट गया धूल से ।
बच्चों की मां
+
 
 +
बच्चों की माँ
 
आज भी भन्नाई कुदरत पर-
 
आज भी भन्नाई कुदरत पर-
 
'आग लागै रै ईं आंधी गै!'
 
'आग लागै रै ईं आंधी गै!'
 +
 
अलसुबह ही
 
अलसुबह ही
 
बेटी लगा रही है झाड़ू
 
बेटी लगा रही है झाड़ू
 
और पत्नी मार रही है पोंछा
 
और पत्नी मार रही है पोंछा
पहले जिसने पीट-पीट खाटों को झड़काया।
+
पहले जिसने पीट-पीट खाटों को झड़काया ।
 +
 
 
मैं झड़क चुकी खाट पर आराम से लेटा
 
मैं झड़क चुकी खाट पर आराम से लेटा
 
इस इंतजार में कि
 
इस इंतजार में कि
 
घर की धूल निकल जाए तो
 
घर की धूल निकल जाए तो
घुस जाऊं नहानघर में
+
घुस जाऊँ नहानघर में
और अपने बदन की भी निकालूं...
+
और अपने बदन की भी निकालूँ...
बांच रहा हूं चंद्रकांत देवताले की कविताएं
+
बड़ा बेटा बांच रहा अखबार इत्मीनान से
+
और छोटा निकल गया है खेलने बाहर।
+
  
 +
बाँच रहा हूँ चँद्रकांत देवताले की कविताएँ
 +
बड़ा बेटा बाँच रहा अख़बार इत्मीनान से
 +
और छोटा निकल गया है खेलने बाहर ।
 
</poem>
 
</poem>

01:28, 31 अक्टूबर 2010 का अवतरण

 
रात फिर आंधी आई
घर भर गया सारा
कोना-कोना अट गया धूल से ।

बच्चों की माँ
आज भी भन्नाई कुदरत पर-
'आग लागै रै ईं आंधी गै!'

अलसुबह ही
बेटी लगा रही है झाड़ू
और पत्नी मार रही है पोंछा
पहले जिसने पीट-पीट खाटों को झड़काया ।

मैं झड़क चुकी खाट पर आराम से लेटा
इस इंतजार में कि
घर की धूल निकल जाए तो
घुस जाऊँ नहानघर में
और अपने बदन की भी निकालूँ...

बाँच रहा हूँ चँद्रकांत देवताले की कविताएँ
बड़ा बेटा बाँच रहा अख़बार इत्मीनान से
और छोटा निकल गया है खेलने बाहर ।