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"बड़ा अजीब-सा मंज़र दिखाई देता है / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
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वो खेत आज तो बंजर दिखाई देता है। | वो खेत आज तो बंजर दिखाई देता है। | ||
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उसी के हाथ में पत्थर दिखाई देता है। | उसी के हाथ में पत्थर दिखाई देता है। | ||
− | हमें यह डर है | + | हमें यह डर है किनारे भी बह न जायें कहीं, |
अजब जुनूँ में समन्दर दिखाई देता है। | अजब जुनूँ में समन्दर दिखाई देता है। | ||
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वो जर्द चेहरों पे जो चाँदनी सजाता है, | वो जर्द चेहरों पे जो चाँदनी सजाता है, | ||
− | + | मुझे खुदा से भी बढ़कर दिखाई देता है। | |
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18:46, 6 दिसम्बर 2010 का अवतरण
बड़ा अजीब सा मंजर दिखाई देता है।
तमाम शहर ही खंडहर दिखाई देता है।
जहाँ, उगाई थी हमने फसल मुहब्बत की,
वो खेत आज तो बंजर दिखाई देता है।
जो मुझको कहता था अक्सर कि आइना हो जा,
उसी के हाथ में पत्थर दिखाई देता है।
हमें यह डर है किनारे भी बह न जायें कहीं,
अजब जुनूँ में समन्दर दिखाई देता है।
अजीब बात है, जंगल भी आजकल यारो,
तुम्हारी बस्ती से बेहतर दिखाई देता है।
न जाने कितनी ही नदियों को पी गया फिर भी,
युगों का प्यासा समन्दर दिखाई देता है।
वो जर्द चेहरों पे जो चाँदनी सजाता है,
मुझे खुदा से भी बढ़कर दिखाई देता है।