भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कैसे बहकी हुई नज़रों की तय्युश के लिये
सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे
 
कैसे हर शाख से मुंह बंद महकती कलियाँ
नोच ली जाती थीं तजईने - हरम की खातिर
और मुरझा के भी आजादन हो सकती थीं
जिल्ले-सुबहान की उल्फत के भरम की खातिर
 
कैसे इक फर्द के होठों की ज़रा सी जुम्बिश
सर्द कर सकती थी बेलौस वफाओं के चिराग
लूट सकती थी दमकते हुए माथों का सुहाग
तोड़ सकती थी मये-इश्क से लबरेज़ अयाग
सहमी सहमी सी फ़िज़ाओं में ये वीराँ मर्क़द
33
edits