भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
बेसुधी रुकने नहीं देती हमें
जब कोई मंजिल मंज़िल नज़र आती भी है
यों तो मरती ही रही है ज़िन्दगी
यह कभी मरने से जी जाती भी है
कुछ तो कहती हैं तेरी खामोशियाँख़ामोशियाँ
जब नज़र मिलती है, शरमाती भी है
रोज़ खिलते हैं उन आँखों में गुलाब
दिल में पर खुशबू ख़ुशबू पहुँच पाती भी है!
<poem>
2,913
edits