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Kavita Kosh से
बेसुधी रुकने नहीं देती हमें
जब कोई मंजिल मंज़िल नज़र आती भी है
यों तो मरती ही रही है ज़िन्दगी
यह कभी मरने से जी जाती भी है
कुछ तो कहती हैं तेरी खामोशियाँख़ामोशियाँ
जब नज़र मिलती है, शरमाती भी है
रोज़ खिलते हैं उन आँखों में गुलाब
दिल में पर खुशबू ख़ुशबू पहुँच पाती भी है!
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