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बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया,
पाया प्रेमी का ठीक पता।
उठ दौड़े, चौके, प्रभु बोले,
है कहां सुदामा बता बता।
सुनते ही नाम सुदामा का,
अति उर में प्रेम उमंग आया।
प्रेम प्रभु तो खुद ही थे,
हद प्रेम जिन्होंने बरसाया।
 
हाल सुने करुणानिधि ने करुणेश करी करुणा अति भारी,
मीत सखा अरु प्रीत सखा सच आवत यों बहु याद तिहारी।
मीत बड़े सब जानत आप, बड़े हमसे सुधि लीन हमारी,
यों उठ दौरि न ढ़ील करी कित रंक सुदामा व कृष्ण मुरारी।
 
उठ दौडे पैर पयादे ही,
झट पट से प्रभु बाहर आये।
स्नान कराने को उनको
निज हाथों पानी भरती थी।
चंवर मोरछल करते थे सेवा से दिल न अघाते थे। निज प्रेमी के काम कृष्ण सब खुद ही करना चाहते थे। यह आनंद अद्भुत देख-देख, द्विज सोचे यह जाने न मुझे | करते हैं स्वागत धोखे में, प्रभु शायद पहचाने न मुझे | भक्त की कल्पना सभी, उर अन्तर्यामी जान गए | भक्त सुदामा के दिल की, बाते सब पहचान गए | बोले घनश्याम याद है कुछ, जब हम-तुम दोनों पढ़ते थे | थी कृपा गुरु की अपने पर, पढ़-पढ़ के आगे बढ़ते थे | है बात याद बन में भेजे, सब हाल कहे प्रभु दर्शाके | उस समय रहे बन माहिं दोऊ, घबराए मारे वर्षा के | दिल चिंता बढ़ी गुरूजी के, कारण आंधी के आने से | बिजली की तड़क निराली थी, और पानी के बढ़ जाने से | एक वृक्ष की ओट में, तुम हम बैठे जाय | वर्षा रुकती थी नहीं, लीनी क्षुधा सताय |
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