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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=ग़ालिब|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGhazal}}<poem>इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया,<br />दर्द की दवा पायीपाई, दर्द बेदवा पाया ।<br />हाले-दिल नहीं मालूम लेकिन इस क़दर यानी,<br />हमने बारहा ढूँढा तुमने बारहा पाया ।<br />शोरे-पन्दे-नासेह ने ज़ख्म पर नमक छिड़का,<br />आपसे कोई पूछे, तुमने क्या मज़ा पाया <br /poem>