भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपराजित / महेन्द्र भटनागर

43 bytes added, 11:48, 16 जुलाई 2008
|संग्रह=नई चेतना / महेन्द्र भटनागर
}}
[4]
 
 
हो नहीं सकती पराजित युग-जवानी !
 
 
संगठित जन-चेतना को,
युग पुरानी साधना को,
:: आदमी के सुख-सपन को,
:: शांति के आशा-भवन को,
:: और ऊषा की ललाई
:: से भरे जीवन-गगन को,
मेटने वाली सुनी है क्या कहानी ?
 
 
पैर इस्पाती कड़े जो
पर्वतों से दृढ़ खड़े जो,
:: शत्रु को ललकारते हैं,
:: जूझते हैं, मारते हैं,
:: विश्व केर कर्तव्य पर जो :: ज़िन्दगी को वारते हैं,
कब शिथिल होती, प्रखर उनकी रवानी !
 
 
शक्ति का आह्नान करती,
शान से छाती उभरती,
:: जो तिमिर में पथ बताती,
:: हर दिशा में गूँज जाती,
:: क्रांति का संदेश नूतन
:: जा सितारों को सुनाती,
बंद हो सकती नहीं जन-त्राण-वाणी !
1951
 
  
Anonymous user