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कुछ शेर-दोहे / कुमार मुकुल

500 bytes added, 07:45, 4 मार्च 2019
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<poem>
डूबता पत्‍थर नहीं हूं सूर्य हूं मैं
हर सुबह तेरे मुकाबिल आ रहूंगा।
 
डूब जाउंगा यूं ही आहिस्‍ता-आहिस्‍ता
पुरनिगाह कोई यूं ही देखता रहे।
 
जो नहीं है वो ही शै बारहा क्यों है
किसी की यादों को भला मेरा पता क्यों है​।​
वो जो रंग मिटाये हमने
अब दाग़-दाग़ जलते हैं​।​
 
रोज देखता हूं थकता नहीं हूं
यूँतो कोई आस रखता नहीं हूं।
तू तो बदल गई जो​,​ तस्वीर ना बदलना
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