भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
गूँगेगूंगे -बहरे बने रहें मंज़़ूर बन जाएँ मंज़ूर नहीं गिरवी हो लेखनी हमें मंज़़ूर मंज़ूर नहीं
सत्ता से हम टक्कर लेते आये हैं
हम दरबारी ग़ज़ल कहें मंज़़ूर मंज़ूर नहीं
सत्य बोलना जुर्म अगर है तो फिर है जो होगा , सो होगा देखा जायेगा झूठा बोलें खुश रक्खें मंज़़ूर सच से डरकर हम भागें मंज़ूर नहीं
सेाने की भी जाँच कसौटी पर होती
हम हर बात पे हाँ बोलें मंज़़ूर मंज़ूर नहीं
अच्छे दिन के लिए तो की खातिर जाँ भी हाज़िर हैतिल- तिल करके रोज़ अंधे कूप में डूब मरें मंज़ू़र मंज़ूर नहीं
अश्कों से भी दिल के दिये दीप जला सकतेअँधियारे में पड़े रहें मंज़़ूर मंज़ूर नहीं
हम बोंलेंगे तभी ज़माना बोलेगा
इंतेज़ार अब और करें मंज़ू़र मंज़ूर नहीं  ये हालात बदलने ही होंगे यारो और करें अब देर हमें मंज़ूर नहीं
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits