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गिलावा / राकेश कुमार पटेल

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अगहन की अलसायी अलसाई धूप में
ठाकुर के खलिहान की नंगी दूब पर
उकडूं उकडूँ बैठे गंगा भगत ने देखाअपनी धुंधली धुँधली उदास आँखों सेसुन्दर महतो की क्रंक्रीट क्रँक्रीट की हवेली को
तो उनकी शिथिल मांसपेशियों में
एक अजीब-सी सिहरन दौड़ गयीगई
एक आह उठी बीते समय पर
और धुंधलके धुँधलके में चमकती रहीं कुछ तस्वीरें
उन्हें एकाएक भरोसा नहीं हुआ कि
आँखें अब भी बाट जोहती है कि
फिर कोई उन्हें बुलाने आएगा
'भगत काका' मेरे यहाँ गिलावा बनाने चलो न!
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