भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
रात ने दर्द-ए-दिल को छुपाया मगर,
दूब की शाख़ पर कुछ नमी रह गई।
करके जूठा फलों को पखेरू उड़ा,
रूह तक शाख़ की काँपती रह गई।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits