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{{KKRachna
|रचनाकार=जोश मलीहाबादी
}} वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे<br>
बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे<br><br>
अल्लाहरे अल्लाह रे ख़ाकसारिए रिनदाँने बादा ख्वार रिंदाँने बादाख्वार <br>रश्के ग़ुरूरो क़ैसरो रश्क-ए-ग़ुरूर-ओ-क़ैसर-ओ-कसरा कहें जिसे<br><br>
बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई<br>
इस चर्ख़े चर्ख़-ए-नाज़ से क़दे क़द-ए-बाला कहें जिसे<br><br>
ज़ुल्फ़े ज़ुल्फ़-ए-हयात नोएबशर में है आज तक <br>ज़ख़्मे गुनाहे ज़ख़्म-ए-गुनाह-ए-आदम --हव्वा कहें जिसे<br><br>
कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब <br>
दिल की ज़ुबाँ में वाद वादा--फ़रदा कहें जिसे<br><br>
मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीमे शमीम-ए-ज़ुल्फ़ <br>मेरी नज़र है चेहरा --ज़ेबा कहें जिसे<br><br>
लो आ रहा है वो कोई मस्तेख़राम मस्त-ए-ख़राम से <br>इस चाल से के लरज़िशे लरज़िश-ए-सेहबा कहें जिसे<br><br>
तेरे निशाते निशात-ए-ख़ाना --अमरोज़ में नहीं <br>वो बुज़दिली के ख़तरा --फ़रदा कहें जिसे <br><br>
ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर<br>
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे
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