भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=जोश मलीहाबादी
}} वो जोश ख़ैरगी है तमाशा कहें जिसे<br>
बेपरदा यूँ हुए हैं के परदा कहें जिसे<br><br>
बिजली गिरी वो दिल पे जिगर तक उतर गई<br>
इस चर्ख़े चर्ख़-ए-नाज़ से क़दे क़द-ए-बाला कहें जिसे<br><br>
कितनी हक़ीक़तों से फ़ज़ूँतर है वो फ़रेब <br>
दिल की ज़ुबाँ में वाद वादा-ए -फ़रदा कहें जिसे<br><br>
मेरा लक़ब है जिसका लक़ब है शमीमे शमीम-ए-ज़ुल्फ़ <br>मेरी नज़र है चेहरा -ए -ज़ेबा कहें जिसे<br><br>
लो आ रहा है वो कोई मस्तेख़राम मस्त-ए-ख़राम से <br>इस चाल से के लरज़िशे लरज़िश-ए-सेहबा कहें जिसे<br><br>
तेरे निशाते निशात-ए-ख़ाना -ए -अमरोज़ में नहीं <br>वो बुज़दिली के ख़तरा -ए -फ़रदा कहें जिसे <br><br>
ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर<br>
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे