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:कौन समझे आज मेरा शोक?
स्वर्ग क्या, अपवर्ग पाओ तात,
पर बता जाओमुझे यह बात--राज्य-संग तुम्हें कहाँ से हाय!दे सकूँगा आर्य को अनुपाय?आज तुम नरराज, प्रश्नातीत,ये प्रजाजन ही कहें, नयनीत--धन किसी का जो हरे क्रम-भोग्यदण्ड क्या उसके लिये है योग्य?आह! मेरी जय न बोलो हार,इस चिता ही में बहुत अंगार!था तुम्हें अभिषेक जिनका मान्य,हैं कहाँ वे धीर-वीर-वदान्य?वन चलो सब पंच मेरे साथ,हैं वहीं सबके प्रकृत नरनाथ।राज्य पालें राम जनकप्राय,राम का प्रतिनिधि भरत वन जाय।निज प्रजा-परिवार-पालन-भारयदि न आर्य करें स्वयं स्वीकार 
</poem>
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