भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
बिछुडे बिछुडे़ तेरे सब आलिंगन,
पुलक-स्पर्श का पता नहीं,
टकराती होगी अब उनमें
तिमिगिलों तिमिंगिलों की भीड भीड़ अधीर।
दिग्दाहों से धूम उठे,
या जलचर जलधर उठे क्षितिज-तट के
सघन गगन में भीमप्रकंपन,
Anonymous user