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आवाजाही में मशगूल शंकालु लोग
ताकि ताकते रहेंगे मुझे
किसी गैर-ग्रह के बाशिंदे जैसे
और अपनी अलपटप अटकलों से
बुनते रहेंगे
अटूट विचारों के कच्चे धागे--
कि होगा कोई व्यथित प्रेमी बरसों से, अचानक लुप्त हो गई प्रेमिका की तलाश में, बेचारा! च्च च्च च्च च्च ... ... या , किसी नई तितली की फिराक में लफंगा, लोफर, लौंडियाबाज़ ... ...
गश्त पर पुलिसकर्मी
और ताड़ रहा है
मेरी अजीबोगरीब हुलिया से
कि कहीं यह कोई पाकिस्तानी घुसपैठिया आतंकवादी या मानवबम तो नहीं जो किसी बस या ट्रेन में जनसंकुल प्लेटफार्म पर कर दे कोई धमाका, दहला-दहला दे इस तामसी देश के बेहया नागरिकों को, और सुगबुगा दे हमारी राजतन्त्रिकाओं, राजशिराओं को
पल भर के लिए
कोसता ही जा रहा है
मेरे अजगरपन पर--
कि अकारण प्रतीक्षा करने की मनोदशा में
क्यों कुण्डली मारे रहोगे
कुछ देर औरतक
जबकि बूढ़े घोड़े-सा
बमुश्किल खड़ा
हिनहिनाकर बयाँ कर रहा है
मेरे भीतर के
क्लस किस कोने की कौन-सी घुटन
जो किन्हीं हड्डियों के
गठियाए जोड़ों से
जिसे खम्भे पर आराम फरमाती औरत
कोई छद्म संकेत समझकर
मुस्कराती है और
मुझे किन्हीं चिर-दमित यौन कुंठाओं पर
शर्मसार-शर्मसार कर जाती है
बेशक! आदतन इंतज़ार करने के जूनून में हमारी त्रिकाल दौड़ तीव्रतर हो जाती है,हम वास्तुवस्तु, व्यक्ति
और प्राय: दिवास्वप्न के पंख पर बैठकर
बखूबी तौल लेते हैं
और घूम-फिर आते हैं ख्यालों में
धार्मिक, अनैतिक और असामाजिक क्षेत्रों से
 
महानगर के सभ्रांत बुजुर्गों जैसे,
जो अपनी चश्मा-चढ़ी आँखों से
किसकी प्रतीक्षा में
कौन-सी पहर तक,
लिस किस गाडी के छूटने और आने तक
क्योंकि हम ऐसा
करते रहने को अभिशप्त हैं