भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गवाही / विमल कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल कुमार }} {{KKCatKavita‎}} <poem> तुम बोलोगी नहीं सुनोगी न…)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:35, 16 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

तुम बोलोगी नहीं
सुनोगी नहीं
जो कुछ मुझे कहना था गवाही में
मैंने इस दर्पण को कह दिया है

यही है एकमात्र गवाह
मेरे अपराधों का
पापों का
झूठ का
छल का
इससे बचकर मैं कहाँ जाता
इसलिए मुझे जो कुछ कहना था
मैंने उससे कह दिया है

मैंने अब तक तुमसे
अपने जीवन में कुछ भी नहीं लिया है
तुम्हें मैंने
बिना माँगे अपना प्यार दिया है
झूठ नहीं था उसमें रत्ती भर मिला
सच था, जितना वक़्त मैंने तुम्हारे साथ जीया है

बता दो, मेरा अपराध
फिर देना सज़ा
आख़िर मैंने क्या किया है