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"व्यक्ति का आचरण विषैला है / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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व्यक्ति का आचरण विषैला है
 
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आज पर्यावरण विषैला है
 
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रात पहुंचेगी भोर तक कैसे
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जबकि पहला चरण विषैला है
 
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हर नया संस्करण विषैला है
 
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गीत का व्याकरण विषैला है</poem>
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गीत का व्याकरण विषैला है
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01:17, 21 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

व्यक्ति का आचरण विषैला है
सारा वातावरण विषैला है

क्या सुनाएँ कथा विगत की तुम्हें
अपना हर संस्मरण विषैला है

सुन लो जंगल उजाड़ने वालो
इतना शहरीकरण विषैला है

वो क्या अमृत पिलाएगा जग को
जिसका अंत:करण विषैला है

साँस लेना भी हो गया मुश्किल
आज पर्यावरण विषैला है

रात पहुँचेगी भोर तक कैसे
जबकि पहला चरण विषैला है

क्या गजब है कि आदमीयत का
हर नया संस्करण विषैला है

अब न रस है, न छंद है, लय है
गीत का व्याकरण विषैला है