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"कुछ न किसी से बोलेंगे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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कुछ न किसी से बोलेंगे<br>
 
कुछ न किसी से बोलेंगे<br>

01:09, 28 जनवरी 2008 का अवतरण


कुछ न किसी से बोलेंगे
तन्हाई में रो लेंगे

हम बेरहबरों का क्या
साथ किसी के हो लेंगे

ख़ुद तो हुए रुसवा लेकिन
तेरे भेद न खोलेंगे

जीवन ज़हर भरा साग़र
कब तक अमृत घोलेंगे

नींद तो क्या आयेगी "फ़राज़"
मौत आई तो सो लेंगे