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"अनहद सुख / शांति सुमन" के अवतरणों में अंतर
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02:33, 3 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
यह जो चमक रहा है दिन में
अपना ही घर है
छत के ऊपर कटी पतंगें
दौड़ रहे हैं बच्चे
सूखे कपड़ों को विलगाकर
खेल रहे हैं कंचे
यह जो बेच रहा है टिन में
गुड़ औ’ शक्कर है ।
एक-एक रोटी का टुकड़ा
एक-एक मग पानी
फिर भी रोती नहीं सविता
नानी की हैरानी
यह जो सोच रहा है मन में
असली फक्कड़ है ।
नंगे पाँव चले बतियाने
इस टोले, उस टोले
कीचड़ को ही बना आइना
उझक-उझक डोले
यह अनहद सुख जागा जिनमें
वह तो ईश्वर है ।