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"भाव कुछ अपवाद के / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

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04:14, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

      लड़खड़ाए शब्द
      फिर अनुवाद के ।

भोर के दिल में अनोखी धुंध है
धूप का भी व्याकरण अब कुंद है
जुड़ गये हैं भाव
कुछ अपवाद के ।

शीत में इक अग्निवर्णी घाम है
शान्ति में भी हर तरफ़ कोहराम है
होंठ सूखे जा रहे
अवसाद के ।

देख ली हमने शरारत शूल की
पसलियाँ हैं रक्तरंजित फूल की
टूटकर सपने गिरे
आल्हाद के ।

      लड़खड़ाए शब्द
      फिर अनुवाद के ।