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"काँटा हुई तुलसी / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
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हमारी आस्था | हमारी आस्था | ||
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रास्ते से भागता | रास्ते से भागता | ||
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− | शाप जैसे भोगते | + | संकल्प मृग हम तृण धरे पथरा गए ।। |
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पर्व जैसे देह के जेवर | पर्व जैसे देह के जेवर | ||
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संस्कारों की बनावट आज | संस्कारों की बनावट आज | ||
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कीड़े खा रहे | कीड़े खा रहे | ||
+ | गुनगुनाते आइने थे | ||
+ | वक़्त के हाथों गिरे चिहरा गए ।। | ||
− | + | ना-नुकुर हीला-हवाली और | |
− | + | अस्फुट ग़ालियाँ | |
− | + | भाइयों की हरक़तें हैं | |
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− | ना नुकुर हीला हवाली और | + | |
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झनझनाती थालियाँ | झनझनाती थालियाँ | ||
− | + | एक अनुभव साढ़े-साती | |
− | एक अनुभव साढ़े साती रत्न जैसे दोस्त भी कतरा | + | रत्न जैसे दोस्त भी कतरा गए ।। |
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12:39, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
लहलहाते खेत जैसे दिन हमारे
थार कच्चा खा गए ।
सूखकर काँटा हुई तुलसी
हमारी आस्था
धर्म सिर का बोझ, साहस
रास्ते से भागता
शाप जैसे भोगते
संकल्प मृग हम तृण धरे पथरा गए ।।
पर्व जैसे देह के जेवर
उतरते जा रहे
संस्कारों की बनावट आज
कीड़े खा रहे
गुनगुनाते आइने थे
वक़्त के हाथों गिरे चिहरा गए ।।
ना-नुकुर हीला-हवाली और
अस्फुट ग़ालियाँ
भाइयों की हरक़तें हैं
झनझनाती थालियाँ
एक अनुभव साढ़े-साती
रत्न जैसे दोस्त भी कतरा गए ।।