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"कौसानी में सुबह के चार चित्र-3 / सिद्धेश्वर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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हवा में खुनक है
ठंड की
सूर्य की किरणों के साहचर्य में
खुल रही है
पेड़ों की ठिठुरी देह ।
मैं यहीं हूँ
इस अजगुत को देखता
संग है तुम्हारी आभा
बार -बार पुकारता है गेह ।