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"वह इस युग का / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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12:51, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

जीकर भी जो जिए नहीं
वह नर है,
मरकर भी जो डरे नहीं
वह डर है,
बनकर भी जो बने नहीं
वह घर है,
खुलकर भी जो खुले नहीं
वह स्वर है,
वह इस युग का; कर-बल-छल का
वर का।

रचनाकाल: १५-११-१९६१