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"अनाज न होने का / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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14:23, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

मेरे गाँव में भी अकाल पड़ा है
और मैं कुछ न कर सका
न किसी का पेट भर सका
न जीने का सहारा दे सका
न मर सका उनके लिए
कि वह जिएँ

भला होता
अनाज होता
मनों-टनों में
खेत में उपजा
खाने के लिए
उनके लिए

उफ! कि मैं आदमी हूँ-
कि मुझे दर्द है आदमी होने का
अनाज न होने का

रचनाकाल: १४-०७-१९६७