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"नींद-3 / मणिका दास" के अवतरणों में अंतर
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23:21, 12 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
शाम को दूरदराज के गाँव में लोरी सुनकर
अरे नहीं
बच्ची की आकुल पुकार सुनकर
आएगी या नहीं आएगी मैं नहीं जानती
फिर भी
फिर भी कभी-कभी तुझे पुकारने को जी चाहता है
उदास शाम के चौबारे पर
खड़े होकर
गहरी रात के सर्द सीने से
ओ नींद उतर आ उतर आ
एक डग, दो डग नहीं
बगुले के पंख लगाकर तू उड़ कर आ
उड़ कर आ मेरे सूने सीने में
और कितना चलूँगी
अंधेरे में
और देखूँगी कितनी राह
धूप के लिए
मृतक की तरह
सर्द हो गए हैं सपने
बगुले के पंख लगाकर तू उड़ कर आ
उड़ कर आ...
मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार