भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शाम की शरबतिया / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …) |
छो ("शाम की शरबतिया / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:51, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
रोशनी का
सोन-चम्पई लिबास पहने
शाम की शरबतिया
आकाश से जमीन पर आई
महानगर मदरास में
रात हुए तक
नाचते-नाचते दिल और
दिमाग में आदमियों के छाई
जादुई रंग-रूप से समाई
मैंने उसे देखा
और भेंटा भी
लेकिन अब लोप हुई
शरबतिया
रात के अँधेरे में डूब गई दुनिया।
रचनाकाल: ०८-०६-१९७६, मद्रास