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"आग / रतन सिंह ढिल्लों" के अवतरणों में अंतर

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14:17, 17 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

आओ!
इस ठंडी हो रही
आग को निहारें

देखें, कुरेदें
बाक़ी बचे
अंगारों को खोजें ।

कभी इस आग में
देह दग-दग करती थी
अब
पेट भी नहीं सुलगते ।
 
पेटों की जठराग्नि ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला