भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुझाई गयी कविताएं" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
* अब तक के योगदान जिन्हें इस पन्ने से हटा कर सही श्रेणी में पहुँचा दिया गया है:
 
* अब तक के योगदान जिन्हें इस पन्ने से हटा कर सही श्रेणी में पहुँचा दिया गया है:
 
** [[स्वप्न झरे फूल से / गोपालदास "नीरज"]]
 
** [[स्वप्न झरे फूल से / गोपालदास "नीरज"]]
 +
** [[दिन दिवंगत हुए / कुँअर बेचैन]] योगदान [[deepak]] द्वारा
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
+
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
 
+
दिन दिवंगत हुए
+
 
+
रोज़ आँसू बहे रोज़ आहत हुए
+
रात घायल हुई, दिन दिवंगत हुए
+
हम जिन्हें हर घड़ी याद करते रहे
+
रिक्त मन में नई प्यास भरते रहे
+
रोज़ जिनके हृदय में उतरते रहे
+
वे सभी दिन चिता की लपट पर रखे
+
रोज़ जलते हुए आख़िरी ख़त हुए
+
दिन दिवंगत हुए !
+
 
+
शीश पर सूर्य को जो सँभाले रहे
+
नैन में ज्योति का दीप बाले रहे
+
और जिनके दिलों में उजाले रहे
+
अब वही दिन किसी रात की भूमि पर
+
एक गिरती हुई शाम की छत हुए !
+
दिन दिवंगत हुए !
+
 
+
जो अभी साथ थे, हाँ अभी, हाँ अभी
+
वे गए तो गए, फिर न लौटे कभी
+
है प्रतीक्षा उन्हीं की हमें आज भी
+
दिन कि जो प्राण के मोह में बंद थे
+
आज चोरी गई वो ही दौलत हुए ।
+
दिन दिवंगत हुए !
+
 
+
चाँदनी भी हमें धूप बनकर मिली
+
रह गई जिंन्दगी की कली अधखिली
+
हम जहाँ हैं वहाँ रोज़ धरती हिली
+
हर तरफ़ शोर था और इस शोर में
+
ये सदा के लिए मौन का व्रत हुए।
+
दिन दिवंगत हुए!
+
 
+
 
+
-डॉ० कुँअर बेचैन
+

19:16, 27 जुलाई 2006 का अवतरण

आप जिस कविता का योगदान करना चाहते हैं उसे इस पन्ने पर जोड दीजीये।
कविता जोडने के लिये ऊपर दिये गये Edit लिंक पर क्लिक करें। आपकी जोडी गयी कविता नियंत्रक द्वारा सही श्रेणी में लगा दी जाएगी।

  • कृपया इस पन्ने पर से कुछ भी Delete मत करिये - इसमें केवल जोडिये।
  • कविता के साथ-साथ अपना नाम, कविता का नाम और लेखक का नाम भी अवश्य लिखिये।

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*