भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेम-3 / अरुण देव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण देव |संग्रह=क्या तो समय / अरुण देव }} {{KKCatKavita}} <poem>…)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:42, 26 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

घने बादलों की तरह छा गया मैं
उसकी प्यासी धरती पर
उसकी देह जैसे एक सघन वृक्ष
अपनी पत्तियों से पसीजता हुआ पोर-पोर
उसके ताप से
धारदार बरसा मैं
मूसलाधार दिनों में

अगली सुबह खिली हुई धूप में
हमने सुखाए अपने-अपने क्लेश ।