भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पराई राहें / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=आँगन के पार द्वार / अज्ञेय }} {{KKCatKavita}}…)
(कोई अंतर नहीं)

18:16, 2 फ़रवरी 2011 का अवतरण

दूर सागर पार
पराए देश की अनजानी राहें ।
पर शीलवान तरुओं की
गुरु, उदार
पहचानी हुई छाँहें ।
छनी हुई धूप की सुनहली कनी को बीन,
तिनके की लघु अनी मनके-सी बींध, गूँथ, फेरती
सुमिरनी,
पूछ बैठी :
कहाँ, पर कहाँ वे ममतामयी बाँहें ?