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"धूप में बस्ता उठाए / निर्मल शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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धूप में बस्ता उठाए
हाँफता बच्चा ।
तोतली-भोली निगाहें,
लापता बच्चा ।
नींद नयनों में
अभी अलसा रहीं किरनें
किन्तु कक्षा के नियम
मन में लगे तिरनें
सभ्यता का कंटकित पथ
नापता बच्चा ।
बादलों से घिर गया है
व्योम बचपन का
पाँच का है, लग रहा पर
वृद्घ पचपन का
कापियों पर अब किताबें
छापता बच्चा ।
तोतली-भोली निगाहें,
लापता बच्चा ।