भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूखी नदी-सा / रमेश चंद्र पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश चंद्र पंत }} {{KKCatNavgeet}} <poem> पुल हमें था जोड़ता जो …)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:35, 11 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

पुल हमें
था जोड़ता जो ढह गया !

बात थी
कुछ भी नहीं
थे स्वार्थ अंधे
व्यग्र थे उद्धत बहुत
हो उठे कंधे

एक सूनापन
है मन में, गड़ गया !

थे ग़लत
कोई नहीं
पर, कौन सुनता
बर्छियाँ ताने सभी थे
कौन झुकता

मन कहीं
सूखी नदी-सा हो गया !