भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आदिम डर / शकुन्त माथुर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुन्त माथुर |संग्रह=लहर नहीं टूटेगी / शकुन्त म…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:35, 11 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
मेरे हाथ मॆं क़िताब है
और मैं लेट जाती हूँ
पसीने से तर
हर अच्छी चीज़ एक लड़की है
हर लड़की को एक रूमाल के रूप में
मैं पाती हूँ
रूमाल एक क़िताब है
जो किसी भी समय किसी के पास
जा सकती है
मैं क़िताब पढ़ती हूँ
हर वाक्य उसका डाल की तरह
हिल रहा है
ऐर हर शब्द एक सस्ते उपन्यास की तरह
खिंच रहा है
सफ़ेद अंडे-सी
दाँतों में दबी लड़की-
और मैं लेट जाती हूँ
पसीने से तर
आदिम डर !