भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मौसम की आनाकानी / निर्मल शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल शुक्ल |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> चिंगारी से शर्…)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:49, 15 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

चिंगारी से शर्त लगी है
आंधी से तकरार नहीं है

नहीं पसीजीं
गर्म हवाएँ
रेत हो गए घर सपनों के
एक दूसरे के
कांधों पर
रो लेते हैं सर अपनों के

झंझावातों से अठखेली
करने का त्यौहार नहीं है

है मौसम की
आनाकानी
उतर गए ऋतुओं के तार
हँसकर पतझड़
छेड़ गया है
मधुमासों के साज-सँवार

सुर्ख़ हो गई धवल चाँदनी
लेकिन चीख़-पुकार नहीं है

इतने पर भी
कानों में कुछ
दे जाती संवाद दिशाएँ
दूर कहीं इस
उठापटक में
होंगी फिर अनुरक्त ऋचाएँ

स्थिति अब इन चिकनी-चुपड़ी
बातों को तैयार नहीं है