भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आहटें / वाज़दा ख़ान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:51, 2 मार्च 2011 के समय का अवतरण

वे आहटें मुझ तक नहीं आएँगी
वे उजाले के दीये मुझ तक नहीं आएँगे
आते हैं मुझ तक वे काफ़िले जो रेतीली
सरहदों में चला करते हैं

अक्सर रूहें पाँवों के निशान छोड़कर
क़ाफ़िले में ही आगे बढ़ जाती हैं

उन निशानों पर कभी तेज़ हवा ढूहें बनाती है
कभी उन्हें अपने संग उड़ाकर ले जाती है