भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्वर्ण किन्नरी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल |संग्रह=जीतू / चन्द्रकुं…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:29, 7 मार्च 2011 के समय का अवतरण

कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें

झनझना उठी झिल्ली,
झिन-झिन दुर्वा से होकर गई कौन ?
क्रुद्ध नागिनी-सी
अपने फन सहस पटकती
गर्जन करती, तर्जन करती,
मुख से गरल उगलती ।