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प्रबल भूप सेवहिं सकल,धुनि निसान बहु साद | प्रबल भूप सेवहिं सकल,धुनि निसान बहु साद | ||
Ek phul ke chah Subhdra kumari chauhan ki kavita | Ek phul ke chah Subhdra kumari chauhan ki kavita | ||
+ | १.होंगे वे कोइ और/श्रीकृष्ण सरल |
01:59, 24 अगस्त 2007 का अवतरण
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चंद्रबरदाई की एक कविता का अंश है यह, चाहें तो काव्य-कोश में फ़िलहाल इसे ही जोड़ सकते हैं ।
पूरब दिसी गढ़ गढ़्नपति,समुद्र सिषर अति दुग्ग
तहं सुर विजय सुर-राजपति,जादू कुलह अभग्ग
हसम ह्य्ग्ग्य देई अति, पति सायर भ्रज्जाद
प्रबल भूप सेवहिं सकल,धुनि निसान बहु साद Ek phul ke chah Subhdra kumari chauhan ki kavita १.होंगे वे कोइ और/श्रीकृष्ण सरल