भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुझाई गयी कविताएं" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
  
 
प्रबल भूप सेवहिं सकल,धुनि निसान बहु साद
 
प्रबल भूप सेवहिं सकल,धुनि निसान बहु साद
Ek phul ke chah  Subhdra kumari chauhan  ki kavita
+
Ek phul ke chah  Subhdra kumari chauhan  ki kavita  
.होंगे वे कोइ और/श्रीकृष्ण सरल
+
-----------------------------------------------------------   
 +
() होंगे वे कोइ और / श्री कृष्ण सरल
 +
(२) चंद्रसेन विराट की निम्न लिखित कविता
 +
****** तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये/थे कभी मुख पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये*******
 +
(२)

02:17, 24 अगस्त 2007 का अवतरण


कृपया अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न भी अवश्य पढ़ लें

आप जिस कविता का योगदान करना चाहते हैं उसे इस पन्ने पर जोड़ दीजिये।
कविता जोड़ने के लिये ऊपर दिये गये Edit लिंक पर क्लिक करें। आपकी जोड़ी गयी कविता नियंत्रक द्वारा सही श्रेणी में लगा दी जाएगी।

  • कृपया इस पन्ने पर से कुछ भी Delete मत करिये - इसमें केवल जोड़िये।
  • कविता के साथ-साथ अपना नाम, कविता का नाम और लेखक का नाम भी अवश्य लिखिये।



*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड़ सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~

चंद्रबरदाई की एक कविता का अंश है यह, चाहें तो काव्य-कोश में फ़िलहाल इसे ही जोड़ सकते हैं ।

पूरब दिसी गढ़ गढ़्नपति,समुद्र सिषर अति दुग्ग

तहं सुर विजय सुर-राजपति,जादू कुलह अभग्ग

हसम ह्य्ग्ग्य देई अति, पति सायर भ्रज्जाद

प्रबल भूप सेवहिं सकल,धुनि निसान बहु साद Ek phul ke chah Subhdra kumari chauhan ki kavita


(१) होंगे वे कोइ और / श्री कृष्ण सरल (२) चंद्रसेन विराट की निम्न लिखित कविता

            • तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये/थे कभी मुख पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये*******

(२)